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किसी भी संस्थान के पूर्ववर्ती छात्रों की पेशेवर सफलता उस संस्थान से मिलने वाली उपाधि का मोल तय करती है। इसके अलावा दूसरी बातें भी हैं, लेकिन ये उपाधि का मोल तय करने में सबसे अहम यही है। लेकिन सिक्के का दूसरा पहलु ये है कि उपाधि का मोल पूर्ववर्ती और वर्तमान सभी छात्रों की सफलता का आधार तय करता है। समझने की कोशिश करिए। ...जोशारू, हमारे-आपके भविष्य को सीधा प्रभावित कर सकता है...

Monday, October 25, 2010

लोहरदगा में जारी है खेल.... भाष्कर-भाष्कर

झारखण्ड में लोहरदगा बाक्साईट के साथ- साथ पत्रकारिता के ऐतिहासिक पृष्ठ भूमि के लिए प्रसिद्ध है. लोहरदगा जिले में अभी भी साठ वर्षीय पत्रकार हाड़ - मांसों में घुमाते नजर आते हैं. कम से कम बीस वर्ष के पत्रकारीय अनुभव वाले दर्जन भर पत्रकार प्रेस तख्तियों वाले वाहनों में भटकते दिख जाते हैं. एशिया के सबसे छोटे जिले में शुमार लोहरदगा में हर मोहल्ले में एक ब्यूरो चीफ और चौराहे पर मिडिया कि चर्चा वाले लोग पान कि पगुराई के साथ बोलते बतियाते मौजूद हैं.
ऊपर लोहरदगा कि पत्रकारिता कि भूमिका अब लोहरदगा के पत्रकारों के बीच खेले जाने वाले खेल कि चर्चा. लोहरदगा के पत्रकार इन दिनों भाष्कर- भाष्कर खेल रहें हैं. यह नया खेल क्रिकेट और गुल्ली डंडे का मिला जुला स्वरूप है, यानि गुल्ली क्रिकेट. पक्ष और विपक्ष कि टीमें भी तैयार है बैटिंग में भी पत्रकार और बौलिंग में भी पत्रकार. लोहरदगा के वेस्ट इंड से यानि अजय पार्क साइड से हर दिन नए एंगल के साथ बौलिंग कि जाती है. और बौलिंग करने वाले को बोल्ड करते हुए भाष्कर कि ब्युरोगिरी पकड़ाते हुए पवेलियन भेज दिया जाता है. पवेलियन जाते- जाते कोणीय बोलन दाज द्वारा हर सामान्य पत्रकार को भाष्कर का मुर्धन्य ऑफर लेटर पकड़ा दिया जा रहा है.

खेल का सरदार बाबु मुशाय ..
भाष्कर - भाष्कर के इस खेल में कप्तान हमेशा कि तरह एक हीं हैं . महानुभाव को हर खबर में विशेष कोण नजर आता है इसीलिए इन्हे पत्रकार जमात में एंगल पत्ती कहा जाता है. हर दिन एक नए खेल का उदघाटन यही करते हैं...और खेल कि उडती खबरों में नए - नए एंगल भरते हैं. बाबु मुशाय विदेशी भाषा कि पत्रकारिता करते हैं और देशी भाषा के पत्रकारों पर ताने कसते हैं. बाबु मुशाय भाष्कर - भाष्कर खेल के निर्माता और निर्देशक हैं. खेल कि प्रगति और प्रसिद्धी से बाबु मुशाय हैरत से भक हैं . भाष्कर कि दौड़ में बाबु मुशाय भी दौड़ लगा रहे थे . दूसरो कि राह पर नो इंट्री का बोर्ड लगाकर खुद सीधा दौड़े जा रहे थे . दुसरे कि टांग खिचाई में इनकी टांग फस गई बाबु मुशाय के हाथ से भाष्कर फिसल गई . अब सदमे में हैं बाबु मुशाय लोगो से थोड़े कट- कट कर मिलते हैं. अपने हीं एंगल से भटक कर मिलते हैं .

बधाई और मिठाई का दौर ...
ऑफर लेटर के बाद बधाई और मिठाई का दौर लोहरदगा में जारी है . जिसके ऑफर लेटर कि चर्चा सरेआम हुई वह सुबह से शाम तक बधाइयाँ सुनता है और मिठाइयाँ बाटता है. हर चौक चौराहे पर जहाँ भी यार पत्रकार मिले पान कि पिक और सिगरेट कि कश के साथ भाष्कर कि कशमकश शुरू हो जाती है. और शुरू हो जाती है भाष्कर भाष्कर कि जोर और गहराते शाम के साथ बन जाता है शोर फिर हर कश के साथ धुंआ उड़ाते हुए किसी पत्रकार के रिश्तेदार को घसीटा जाता है . हर पान कि पिक के साथ किसी पत्रकार कि हैसियत को रौंदा जाता है. इस तरह लोहरदगा में भाष्कर - भाष्कर खेला जाता है .

शरद कि ठंड में भाष्कर कि गर्मी...
लोहरदगा में शरद ऋतू ने दस्तक दे दी शाम होते हीं ठंड कपड़ों के भीतर घुस कर देह गुदगुदाने लगता है ऐसी शरद शाम और रातों में भी पत्रकारों के बीच भाष्कर का खेल गर्म है.शहर के मुख्य चौराहे में स्ट्रीट लाइट के बीच फुटपाथ में कुर्सिया डाल पत्रकार देर रात तक जागरण कर रहे हैं. ठंड के साथ कपकपाती हथेलिओ से ताली और कटकटाते दांतों से ठहाके और गाली लगाते पत्रकार जागरण में भाष्कर से ऊष्मा प्राप्त कर रात काट रहें हैं. अब तक कि चर्चाओं में करीब दर्जन भर पत्रकार भाष्कर के ब्यूरो बन चुके हैं. पंद्रह से बीस साल के अनुभव वाले पत्रकार को हर साल के अनुभव पर एक हजार का ऑफर दिया जा रहा है. जो तजा और नए हैं उन्हें सस्ते मजदूरी और भविष्य में मिलाने वाले अनुभव के साथ पगार बढ़ाने का आश्वासन के साथ ऑफर का लेटर थमाया जा रहा है. हर रात के जागरण के साथ नया ऑफर नया लेटर और नई मजदूरी कि चर्चा बढती जा रही है.

अब तो बबुआ बनेगे सरदार ..
इस भाष्करीय ब्यूरो चीफ के खेल में दूसरी और तीसरी कतार वाले पत्रकार मन में लड्डू फोड़ते हुए दिल से चाँदी काट रहें हैं. कारण सबको लग रहा सरदार गया तो सारा कबीला अपना और काबिले कि सरदारी (ब्यूरोगिरी ) अपनी. यानि लोहरदगा में हर पत्रकार ब्यूरो बनने के मुगेरी सपने दिन रात देख रहें हैं. ये पत्रकार हर जानकर और रसुखी पत्रकारों से सरदार के विदाई कि पुष्ठी कर रहें हैं. और जहाँ रसुखी पत्रकार ने जाने कि दिन तिथि बताई तो बंदा बाबुसाहब पत्रकार डायरी लेकर उछल पड़ता है,और चेहरे में हसी का ग्लैमर साफ झलक जाता है. ग्लैमर का कारण भी स्पष्ट है कुछ हीं दिन हुए हैं दो साल के दैनिक जगराते से भारत कदम रखे हुए. आते हीं सरदार के जाने कि खबर सरे शाम आम हो गई.इस बाबुसाहब पत्रकार बनने में कुछ और आराम हो गई सो अपनी सरदारी और अपने कबीले में राज़ करने कि ख़ुशी दोगुनी हो गई. छात्र रूपी एक कांटा तो पहले हीं प्रबंधन ने पहले हीं राजधानी में आयात करा लिया सो दोगुनी ख़ुशी चौगुनी हो गई. ऐसे भी बाबुसाहब पत्रकार भारत में रह कर लोहरदगा के हर मिडिया समूह में अपना रक्त बीज बोये हुए हैं .
सरदार बदलने कि खबर से भाष्कर - भाष्कर के साथ अब तो हिंदुस्तान भी खेल बन गया है. नए ऑफर के साथ हिंदुस्तान के सरदार भाष्कर गए तो हिंदुस्तान का सरदार कौन बने ? इस प्रश्न का उत्तर करोड़ पति का सवाल बन गया है. सारे लाइफ लाइन ख़त्म हो गए चार विकल्प तैयार हैं खेल चतुर कोणीय हो गया है मजा चौगुना.खेल को छोड़ कर गए तो सरदारी गई. और हारे तो इज्जत ...

ज्योतिष बना दाढ़ी का तिनका ..
भाष्कर के ब्यूरो बनने के दौड़ में ये बाबा भी थे. खूब दौड़ लगाई सोर्स और पैरवी भी चारो धाम से आई हर चर्चाओं में कर बैठे लड़ाई . थक हार कर बाबा ने ज्योतिष के दरबाजे शीश नवाई...ज्योतिषी जी ने दस उँगलियों में चार अंगूठी है थमाई ... बाबा हुए खुश लगा ब्यूरो कि कुर्सी है अब हाथ आई. बाबा जी रह गए हाथ में अंगूठी मलते और बाजी धृतराष्ट्र के सारथी ने है उड़ाई . अंगूठी पहने हाथो से बाबा दाढ़ी में फेरते हाथ , जगह जगह कर रहे है गुस्से का इजहार. कभी कोसते पत्रकारों को तो कभी भाष्कर पर करते गाली कि बौछार. हर राह पर एंगल बताने वाले एंगल पत्ती से बाबा गए हैं चिढ जो किसी मोड़ पर मिल जाये एंगल पत्ती तो बाबा जमा दे हाथ दो चार .

भाष्कर के लिए निर्णय लेने का वक्त ...
लोहरदगा में अभी तक भाष्कर ने अपना रुख तय नहीं किया है. हर पत्रकार भाष्कर में शामिल होना चाह रहा है. लेकिन भाष्कर है कि एक ठोस निर्णय पर नहीं आ रहा है जिसका नतीजा हो रहा है कि लोहरदगा में भाष्कर के ब्यूरो पद को लेकर चर्चा अफवाह बनती जा रही है कई पत्रकार आशा से सदमे कि स्थिति में हैं. सबसे बुरा हाल भाष्कर में शामिल हुए मौजूदा पत्रकारों कि है भाष्कर ने तीन लोगो को चुन कर रखा लेकिन सर का ताज किसी को नहीं सौपा . इन लोगो के लिए उहापोह कि स्थिति यही है कि किसकी सरदारी में चलेगी सरकार बेहतर हो कि भाष्कर आशंकाओ के परे जा कर एक फैसले पर पहुंचे ताकि भाष्कर के कबीले में सरदारी प्रबंधन लौटे . 
नोट : लेखक अभिषेक शाश्त्री हैं. 

1 comment:

  1. सभी ले रहें मजा,
    इस खेल ए भाष्कर में .
    अब तक हर मुंडा बन गया ब्यूरो ,
    इस खेल ए भाष्कर में ,
    हर तरफ अब भाष्कर हीं नजर आता है.
    ये भी भाष्कर, वो भी भाष्कर ..
    आओ खेलें खेल भाष्कर - भाष्कर ...
    आओ खेलें खेल भाष्कर - भाष्कर........

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