इसमें सबसे ज्यादा ध्यान देनेवाली बात ये है कि इंटरनेट या मोबाइल के जरिए संवाद स्थापित करने वाला व्यक्ति प्रभावोत्पादक (effective) है। वो बेहद निजी पलों में से समय निकालकर, वयक्तिक रूप से शामिल होता है और दूसरों को प्रभावित करने की कोशिश करता है। जाहिर है वो जो कुछ ग्रहण करता है उसपर भी गंभीरता से अमल करने की कोशिश करेगा। यानि यहां संवाददाता और संवाद ग्रहण करने वाला दोनों एक साथ एक ही व्यक्ति में मौजूद होते हैं। हालाकि सूचना देने की प्रवृति अभी उतनी प्रबल नहीं हुई है, लेकिन इसके बीज फूटने लगे हैं।
मुख्तसर ये कि माध्यम की विशिष्टता को छोड़ दें तो पत्रकारिता के मूल सरोकार पर नए मीडिया का गहरा असर पड़ने वाला है। अब ये कितनी जल्दी कितना असर दिखाएगा ये इस बात पर निर्भर करता है कि आधारभूत संरचना के विकास में कितना वक्त लगता है। निजी भागीदारी और प्रतियोगिता के दौर में इसमें भी उत्साहवर्धक नतीजों की उम्मीद की जा सकती है। तो क्या साल दो हजार बारह-तेरह तक?
मनोज श्रीवास्तव |
नोट: लेखक टीवी पत्रकार हैं (मनोज श्रीवास्तव), इन्होने अपने जीवन के दो दशक से भी ज्यादा पत्रकारिता के नाम किया है. ये सहारा समय और न्यूज़ ११ में अपनी लोहा मनवा चुके हैं. और ये इसी विभाग के छात्र भी रह चुके हैं.
पता | 277, Seemant Vihar,kausambi Ghaziabad, India 201010 | लेखक के ब्लॉग :
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