कुछ दिनों पहले एक महिला संगठन ने जुलूस निकालकर अपना विरोध दर्ज कराया . उनकी मांग थी, कि फिल्म "पीपली लाइव" के उस गाने को हटा दिया जाये जिसमे डायन शब्द का इस्तेमाल किया गया है . बड़ी हैरत की बात है कि अपनी सक्रियता दिखाने और अपने संगठन को महिलाओं के अधिकार का सरमायादार जाहिर करने के लिए भाषा के विकास के एक खंड को ही वे "खाने "की कोशिश कर रहे हैं . डायन शब्द से उनको सिर्फ इसलिए चिढ है क्योंकि यह स्त्री बोधक है . कल को जाकर पुरुषवादी संगठन भूत प्रेत . पिशाच जैसे शब्दों पर भी ऐतराज करेंगे और पता चला कि हिंदी के कोष के हजारो शब्द लापता हो गए . और ये ऐसे शब्द हैं जो देशज और लोक शब्द होने की वजह से सीधे दिलो तक पहुचते हैं . पूरा प्रसंग पूरी कहानी या पूरा मतलब महज एक शब्द या एक लोकोक्ति पर निछावर होते हैं . अब उनके चलन को रोकने की मांग निहायत ही अलोकतांत्रिक, लोक भाषा विरोधी और बचकानापन है. कई शब्दों को पहले ही असंवैधानिक घोषित करके हिंदी को कमजोर करने की कोशिश की जा चुकी है . महंगाई डायन खाय जात है ...... गीत इसलिए लोकप्रिय हुआ क्योंकि यह लोकभाषा में गाया हुआ है .. इसने पूरे माहौल को शब्दों से प्रतिबिंबित किया है . लोगो की भावनाओ का सटीक अभिव्यक्ति है . इससे आसान क्या हो सकता है कि महंगाई को यह लोक गीत बड़े सरल भाषा में दिलो तक पंहुचा दे .
एक प्रकरण पढ़ा है कही .... ऋषि अष्टावक्र जनक के दरबार में गए . अष्टावक्र का शरीर आठ जगहों से टेढ़े हो गए थे . वह परम विद्वान थे . जनक के दरबार में विद्वानों ने उनकी चाल देखकर हँसना शुरू कर दिया . अष्टावक्र सभा से वापस लौटने लगे . जनक ने वापस लौटने का कारण पूछा तो अष्टावक्र ने कहा कि वो तो विद्वानों की सभा समझकर सभा में आये थे लेकिन यहाँ तो केवल चमार बैठे हैं जिनकी सोच और नजर महज चमड़े तक है . जनक ने माफ़ी मांगी . सन्दर्भ में इस प्रकरण की चर्चा इसलिए कि चमार शब्द को असंवैधानिक माना गया है . इसका इस्तेमाल बड़े हिसाब से करना होता है . लेकिन अष्टावक्र प्रकरण को देखे तो साफ़ जाहिर होगा एक शब्द का कितना व्यापक मतलब होता है . यह किसी जाति, समुदाय, वर्ग, लिंग या संसथान का मोहताज नहीं बल्कि अभिव्यक्ति का सरल माध्यम है . ऐसे हालत में किसी भी शब्द पर प्रतिबन्ध लगाना गलत है . हाँ नीयत और सन्दर्भ सही होना चाहिए .
हिन्दुस्तान में आम बोलचाल में "साला" शब्द का इस्तेमाल धड़ल्ले से होता है . . दोस्त दुश्मन की परिधि से बाहर इसका इस्तेमाल आम है . इसका शाब्दिक अर्थ .पत्नी का भाई .. होता है . इसको दूसरे नजरिये से देखे तो जिसे आप आम बोलचाल में साला कह रहे हैं उसकी बहन आपकी पत्नी हुई . अगर इसे लेकर ऐतराज और गुस्सा जाहिर किया जाने लगा तो हर मुहाले में चौबीसों घंटे फसाद होता रहे . लेकिन कई बार तो इस शब्द ( या गाली ) के बिना तो वाक्य का पूरा अर्थ ही लगाना मुश्किल हो जाता है . उसमे वह भाव नहीं आ पाता है जो वक्ता या लेखक कहना चाहता है .
हिंदी की भलाई चाहते हो तो ऐसे बचकाने सवाल खड़ा कर इस भाषा के अस्तित्व पर ही उंगली न उठाइए . कम लोगो को पता है . हिंदी की वर्तनी के एक एक अक्षर के कई कई मायने होते हैं . मसलन, क का मतलब ब्रह्मा ,कामदेव , काल , शब्द, जैसे कई अर्थ होते है , उसी तरह ख का मतलब आकाश ,हर्ष जैसे अनेक अभिप्राय होते हैं . हिंदी के अक्षर तक इतने संपन्न है तो शब्दों के क्या कहने ? यह स्थिति केवल व्यंजन वर्ण के शब्दों के लिए नहीं बल्कि स्वर वर्ण के शब्दों के लिए भी है . जाहिर है जो तत्सम और देशज शब्द हिंदी में प्रयोग हो रहे है उनके विकास का एक लम्बा काल रहा होगा . इतना ही नहीं शब्द के बनने के बाद उसके प्रचलन में आने और सर्वग्राह्य होने में भी वर्षो लगे होंगे .
इसीलिए शब्द गलत या बुरे नहीं होते, सन्दर्भ गलत हो सकता है, प्रयोग करने के तरीके गलत हो सकते हैं और विकसित हो रहे हिंदी के शब्दों पर प्रतिबन्ध लगाने की मांग एक सभ्यता और संस्कृति पर आघात है . जो नए शब्द आते हैं उसे हम हिंदी में स्वीकार करने को तैयार हैं तो बने बनाये शब्दों को कूड़ेदान में डालने की गलती हम क्यों कर रहे हैं.
एक प्रकरण पढ़ा है कही .... ऋषि अष्टावक्र जनक के दरबार में गए . अष्टावक्र का शरीर आठ जगहों से टेढ़े हो गए थे . वह परम विद्वान थे . जनक के दरबार में विद्वानों ने उनकी चाल देखकर हँसना शुरू कर दिया . अष्टावक्र सभा से वापस लौटने लगे . जनक ने वापस लौटने का कारण पूछा तो अष्टावक्र ने कहा कि वो तो विद्वानों की सभा समझकर सभा में आये थे लेकिन यहाँ तो केवल चमार बैठे हैं जिनकी सोच और नजर महज चमड़े तक है . जनक ने माफ़ी मांगी . सन्दर्भ में इस प्रकरण की चर्चा इसलिए कि चमार शब्द को असंवैधानिक माना गया है . इसका इस्तेमाल बड़े हिसाब से करना होता है . लेकिन अष्टावक्र प्रकरण को देखे तो साफ़ जाहिर होगा एक शब्द का कितना व्यापक मतलब होता है . यह किसी जाति, समुदाय, वर्ग, लिंग या संसथान का मोहताज नहीं बल्कि अभिव्यक्ति का सरल माध्यम है . ऐसे हालत में किसी भी शब्द पर प्रतिबन्ध लगाना गलत है . हाँ नीयत और सन्दर्भ सही होना चाहिए .
हिन्दुस्तान में आम बोलचाल में "साला" शब्द का इस्तेमाल धड़ल्ले से होता है . . दोस्त दुश्मन की परिधि से बाहर इसका इस्तेमाल आम है . इसका शाब्दिक अर्थ .पत्नी का भाई .. होता है . इसको दूसरे नजरिये से देखे तो जिसे आप आम बोलचाल में साला कह रहे हैं उसकी बहन आपकी पत्नी हुई . अगर इसे लेकर ऐतराज और गुस्सा जाहिर किया जाने लगा तो हर मुहाले में चौबीसों घंटे फसाद होता रहे . लेकिन कई बार तो इस शब्द ( या गाली ) के बिना तो वाक्य का पूरा अर्थ ही लगाना मुश्किल हो जाता है . उसमे वह भाव नहीं आ पाता है जो वक्ता या लेखक कहना चाहता है .
हिंदी की भलाई चाहते हो तो ऐसे बचकाने सवाल खड़ा कर इस भाषा के अस्तित्व पर ही उंगली न उठाइए . कम लोगो को पता है . हिंदी की वर्तनी के एक एक अक्षर के कई कई मायने होते हैं . मसलन, क का मतलब ब्रह्मा ,कामदेव , काल , शब्द, जैसे कई अर्थ होते है , उसी तरह ख का मतलब आकाश ,हर्ष जैसे अनेक अभिप्राय होते हैं . हिंदी के अक्षर तक इतने संपन्न है तो शब्दों के क्या कहने ? यह स्थिति केवल व्यंजन वर्ण के शब्दों के लिए नहीं बल्कि स्वर वर्ण के शब्दों के लिए भी है . जाहिर है जो तत्सम और देशज शब्द हिंदी में प्रयोग हो रहे है उनके विकास का एक लम्बा काल रहा होगा . इतना ही नहीं शब्द के बनने के बाद उसके प्रचलन में आने और सर्वग्राह्य होने में भी वर्षो लगे होंगे .
इसीलिए शब्द गलत या बुरे नहीं होते, सन्दर्भ गलत हो सकता है, प्रयोग करने के तरीके गलत हो सकते हैं और विकसित हो रहे हिंदी के शब्दों पर प्रतिबन्ध लगाने की मांग एक सभ्यता और संस्कृति पर आघात है . जो नए शब्द आते हैं उसे हम हिंदी में स्वीकार करने को तैयार हैं तो बने बनाये शब्दों को कूड़ेदान में डालने की गलती हम क्यों कर रहे हैं.
योगेश किसलय |
नोट : लेखक (योगेश किसलय ) इंडिया टीवी के झारखण्ड ब्यूरो प्रमुख है. और इसी विभाग के छात्र भी रह चुके हैं.
संपर्क: yogeshkislaya@gmail.com
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