आज एक अच्छी पहल देखने को मिली । प्रभात खबर ने अपने एडिटोरियल पेज की लेआउट बदल दी है । पहले दिन का पहला अग्रलेख ही मीडिया के बड़े सवाल का है । पुण्य प्रसून बाजपेयी ने सवाल उठाया है की "कैसे बताएं की मीडिया बिका हुआ है ?" , प्रभात खबर के इस पेज का नाम है अभिमत । इस अभिमत में कई कालम हैं । जीसमे 'प्रभात खबर दस्तावेज' और 'अपने फ़रमाया' प्रमुख है । इनसब से परे जो खास है वो है इसका 'लेटर टूएडिटर कालम' । प्रभात खबर ने अपने इस लोकतंत्रीय कालम का नाम रखा है - "अनुच्छेद - १९" ।
भारतीय संविधान का अनुच्छेद -१९ अभियक्ति की स्वतंत्रता से जुड़ा है । मर्यादित स्वतंत्रता के साथ अपनी बात कहने की आजादी का अनुच्छेद । मीडिया भी इस अनुच्छेद से आजादी पातीहै । आज इस आजादी ने ही मीडिया को स्वछंद बना दीया है । बहुत सीधी सी बात है की आजादी और स्वतंत्रता में बहुत अंतर नहीं होता है । आजादी की मर्यादा से जरा आगे बढे नहीं की आजादी स्वछंदता में बदल जाती है । आजादी और स्व्चंद्ता में बस अंतर है तो नियत का । आजादी में जहाँ नियत का खोट आया तो वो स्वछंदता में बदल जाती है । अभिब्यक्ति में जहाँ स्वछंदता आई तो ठाकरे बनते देर नहीं लगती । कमोबेस यही हालत आज मीडिया की भी है मीडिया में यह कहना की अनुच्छेद १९ की स्तिथि ठीक ठाक है, तो वो शायद मुगालते में हो ।
मीडिया आज इसी भरम में है की वो किस खामोसी का आवाज बने और किस चुप्पी को शब्द दे । खुद मीडिया को भी अपने इस दायीत्तव तय करने में असमंजस बना हुआ है । दरअसल मीडिया आज एक शोर बनता जा रहा है , एक आनावश्यक शोर । इस शोर में सारी स्वतंत्रतायें टूट गयी है । बस वर्जनाओं का ढहाना बाकि रह गया है । आज जिस कर्तब्य पूर्ण अनुच्छेद १९ की मीडिया को जरुरत है वो बहुत कम दिखता है ।
फिर पुण्य प्रसून जी के सवाल पर की कैसे बताएं की मीडिया बिका हुआ है । आज इस सत्य को बताने की जरुरत ही नहीं । अब तो गाँव वाले भी जानने लगे हैं की मीडिया के लोग सच के साथ बलात्कार कैसे करते हैं । सामने घटना कुछ और है और मीडिया में कहानी कुछ और । कई बार तो पूरी की पूरी कहानी ही गायब हो जाती है । मीडिया में आज नियत का खोट भर गया है । यही कारन है की कलम से लेकर कागज तक , और शब्द से आवाज तक मीडिया में बिक रहा है । और अभिब्यक्ति बेचारी मीडिया के पैदा किये गए शोर में दबती जा रही है । स्वतंत्राएँ हाशिये में है , मर्यादाएं ताक पर , स्वछान्दतायें हावी है और मीडिया अपनी जमीं छोड़ हवा में है ।
बहरहाल पुण्य प्रसून जी जब नियत का खोट हो तो जवाब देना मुश्किल हो जाता है , और जो जवाब दीया जाता है उसमे भी शंदेह बना रहता है । ऐसे में कौन कहे की बिका हुआ कौन है । लेकिन परभात खबर को बधाई की पाठको कम से कम लोकतान्त्रिक तरीके से रखा है । और अभिब्यक्ति की स्वतंत्राएँ एक सही रह में बड़े । प्रभात खबर को नए आत्मा के साथ और आगे बढे । ये लेख फ़रवरी २०१० को लिखी गयी थी.
भारतीय संविधान का अनुच्छेद -१९ अभियक्ति की स्वतंत्रता से जुड़ा है । मर्यादित स्वतंत्रता के साथ अपनी बात कहने की आजादी का अनुच्छेद । मीडिया भी इस अनुच्छेद से आजादी पातीहै । आज इस आजादी ने ही मीडिया को स्वछंद बना दीया है । बहुत सीधी सी बात है की आजादी और स्वतंत्रता में बहुत अंतर नहीं होता है । आजादी की मर्यादा से जरा आगे बढे नहीं की आजादी स्वछंदता में बदल जाती है । आजादी और स्व्चंद्ता में बस अंतर है तो नियत का । आजादी में जहाँ नियत का खोट आया तो वो स्वछंदता में बदल जाती है । अभिब्यक्ति में जहाँ स्वछंदता आई तो ठाकरे बनते देर नहीं लगती । कमोबेस यही हालत आज मीडिया की भी है मीडिया में यह कहना की अनुच्छेद १९ की स्तिथि ठीक ठाक है, तो वो शायद मुगालते में हो ।
मीडिया आज इसी भरम में है की वो किस खामोसी का आवाज बने और किस चुप्पी को शब्द दे । खुद मीडिया को भी अपने इस दायीत्तव तय करने में असमंजस बना हुआ है । दरअसल मीडिया आज एक शोर बनता जा रहा है , एक आनावश्यक शोर । इस शोर में सारी स्वतंत्रतायें टूट गयी है । बस वर्जनाओं का ढहाना बाकि रह गया है । आज जिस कर्तब्य पूर्ण अनुच्छेद १९ की मीडिया को जरुरत है वो बहुत कम दिखता है ।
फिर पुण्य प्रसून जी के सवाल पर की कैसे बताएं की मीडिया बिका हुआ है । आज इस सत्य को बताने की जरुरत ही नहीं । अब तो गाँव वाले भी जानने लगे हैं की मीडिया के लोग सच के साथ बलात्कार कैसे करते हैं । सामने घटना कुछ और है और मीडिया में कहानी कुछ और । कई बार तो पूरी की पूरी कहानी ही गायब हो जाती है । मीडिया में आज नियत का खोट भर गया है । यही कारन है की कलम से लेकर कागज तक , और शब्द से आवाज तक मीडिया में बिक रहा है । और अभिब्यक्ति बेचारी मीडिया के पैदा किये गए शोर में दबती जा रही है । स्वतंत्राएँ हाशिये में है , मर्यादाएं ताक पर , स्वछान्दतायें हावी है और मीडिया अपनी जमीं छोड़ हवा में है ।
बहरहाल पुण्य प्रसून जी जब नियत का खोट हो तो जवाब देना मुश्किल हो जाता है , और जो जवाब दीया जाता है उसमे भी शंदेह बना रहता है । ऐसे में कौन कहे की बिका हुआ कौन है । लेकिन परभात खबर को बधाई की पाठको कम से कम लोकतान्त्रिक तरीके से रखा है । और अभिब्यक्ति की स्वतंत्राएँ एक सही रह में बड़े । प्रभात खबर को नए आत्मा के साथ और आगे बढे । ये लेख फ़रवरी २०१० को लिखी गयी थी.
अभिषेक शास्त्री |
लेखक का ब्लॉग : http://awaramedia.blogspot.com/
संपर्क: | abhi.chhotu@gmail.com |